सामाजिक कार्य की अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जन्मी और प्रोफेसन के रूप में मान्यता मिली । सरकारी, गैरसरकारी तंत्र के अधीन समाज कार्य को प्रोफेशनल सेवा, मूलतः साधन व्यतिरेक, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संभावनायें उत्पादक एवं संतुष्ट जीवन हेतु उपलब्ध होती हैं । समाज कार्य एक व्यवस्थित सहायक एवं /अथवा पुनर्स्थापन उपलब्ध कराना है जो कि आर्थिक दृष्टि से निर्भरशील ग्रुप हैं, जैसे बेरोजगार, रोगी, अक्षम, वयोवृद्ध, मानसिक रोगी, विधवा, विकासशील शिशु आदि ।
1989 से सामाजिक एवं वोकेशनल संस्थापक उपखंड ने पुनर्स्थापन मेडिसिन एवं शल्पचिकित्सा के अंतर्गत काम शुरू किया । इसमें भिन्नक्षमों को सामाजिक -वोकेशनल पुनर्स्थापन एवं पी.टी, ओ.टी, पी.ओ, छात्रों को शैक्षिक गतिविधि उपलब्ध हैं ।
यू एन द्वारा सामाजिक पुनर्स्थापन माडल पर अधिक प्राथमिकता के साथ-साथ 2012 में सामाजिक कार्य विभाग शुरू किया गया । इसमें पुनर्स्थापन में समाज कार्य के महत्व को मान्यता दी गई, भिन्न क्षमों(पीडब्लूडी) के जीवन में आर्थिक गतिविधियाँ बढाना संभव है । साथ में मानव संसाधन का विकास एवं अधिकार आधारित दृष्टि सह समाज कार्य में संधान शामिल है । पुनर्स्थापन सेवाओं का लक्ष्य है समान अधिकार भिन्नक्षमों के लिए देना है । इसमें उन की भौतिक, मानसिक एवं समाज क्षमता का पूर्ण विकास करना है । एवं समाज में शामिल करने को प्रोत्साहन प्रदान है ।