भारत पाक युद्घ के दौरान विशाल संख्यक सैनिक एवं साधारण जनों के घायल होने से भिन्नक्षमों की संख्या बढ़ गई । साधारण शारीरिक रूप से भिन्नक्षमों की पुनर्वास हेतु भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एल्मिको), भारत सरकार की उद्यम की स्थापना कानपुर में सेना के सेवानिवृत्त अधिकारियों (सेवा-निवृत्त/सेवाकालीन) की मदद से स्थापना की और कृत्रिम अंग केंद्र (ए.एल.सी.), पुणे में कार्य करने लगा ।
यह जरूरी समझा गया कि एलिम्को द्वारा निर्मित बनी-बनाई उपकरण / उपसाधन को रोगियों के लिए विनिर्माण एवं कृत्रिम अंगों के रोपण के लिए तकनीकी व्यावसायिकों को प्रशिक्षण दिया जाये । अतः जनशक्ति के विकास के लिए एक इकाई मार्च 1974 में कृत्रिम अंग रोपण केंद्र निदेशालय (डी.ए.एल.एफ.सी.) के नाम से सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली में शुरू किया गया । बाद में इसे सफदरजंग अस्पताल में ऑर्थोपेडिक्स विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष तथा एलिम्को के पदेन अध्यक्ष डॉ. बालू शंकरन के पर्यवेक्षण में सफदरजंग एन्क्लेव में भाड़े के एक मकान में स्थानांतरित किया गया । चूँकि इसका मुख्य लक्ष्य प्रशिक्षण था, इसलिए इसका नाम बदल कर केंद्रीय प्रोस्थेटिक एवं ऑर्थोटिक प्रशिक्षण संस्थान (सीपोट) रखा गया । भारत सरकार द्वारा ए.आई.आई.एम.एस., नई दिल्ली के पास एक छोटी सी ज़मीन इसके स्थायी स्थापना हेतु रखी गई ।
तत्कालीन मान्यवर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के 1975 में ओड़िशा दौरे के समय तत्कालीन मान्यवर मुख्यमंत्री श्रीमती नंदिनी सत्पथी ने मान्यवर प्रधानमंत्री जी को बताया की कटक -भुवनेश्वर से 30 कि.मि. दूर ओलटपुर के ग्रामीण क्षेत्र में स्वर्गीय श्री विजयराम मिश्र द्वारा ओड़िशा सरकार को दान दी गई कुछेक भवन के साथ 16.5 एकर भूमि उपलब्ध है जहाँ पर संस्थान बनाने हेतु विचार किया जा सकता है । दिल्ली लौट कर श्रीमती गांधी ने अपने व्यक्तिगत शल्यचिकित्सक डा. शंकरन को ओलटपुर दौरे पर भेजा और नई दिल्ली में जहाँ पर पुनर्वास सुविधाएं उपलब्ध हैं, के बजाए एक ग्रामीण क्षेत्र में संस्थान बनाने की संभावना पर विचार करने को कहा ।
तदनुसार डॉ. शंकरन ने दौरा कर ओलटपुर में संस्थान स्थापन की संस्तुति कर दी । इसके अनुमोदन पर नवम्बर 1975 में संस्थान को नई दिल्ली से ओलटपुर में स्थानांतरित किया गया एवं उनके मंजूरी पर 3 दिसंबर 1975 को कार्य करने लगा । बाद में 1976 से संस्थान का नाम सिपोट से बल कर राष्ट्रीय प्रोस्थेटिक एवं ऑर्थोटिक प्रशिक्षण संस्थान (निपोट) रखा गया । 3 मई 1976 से प्रोस्थेटिक्स एवं आर्थोटिक्स में प्रशिक्षण दिया गया । यह 21 फरवरी 1984 तक एलिम्को के प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता रहा ।
ग्रामीण पुनर्वास पर अधिक जोर देने और इसके स्वायत्तता के उद्देश्य से 22 फरवरी 1984 में संस्थान को एलिम्को से अलग कर दिया गया । इसे समाज कल्याण मंत्रालय (तत्कालीन नाम) भारत सरकार के प्रत्यक्ष प्रशासनिक एवं वित्तीय नियंत्रणाधीन एक स्वायत निकाय कर दिया गया । बाद में इसे 1860 के सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, XXI के अधीन पंजीकृत किया गया । फिरसे एक बार इसका नाम 1984 में निपोट से बलकर राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (निरतार) एवं बाद में 2004 में एस.वि.निरतार कर दिया गया । यह संस्थान चलन संबंधी भिन्नक्षमता से पीड़ित जनों को व्यापक पुनर्वास सेवा मुहैया कराने में देश के शीर्षस्थ संस्थानों में से एक है ।